‘शंका-समाधान’ एक आवश्यक कार्यक्रम है। ऋषिकहते हैं कि, जब-जब विद्वानों के समीप जाएं, तब-तब सबके कल्याण के लिए प्रश्नोत्तर अवश्य करें। ‘‘जब-जब विद्वानों के समीप जाएं, तब-तब सबके कल्याण के लिए” यह वाक्यांश खास ध्यान देने का है। अपने और सबके हित के लिए प्रश्न पूछें। इससे अपनी शंका का समाधान तो होगा ही, साथ ही दूसरों को भी लाभ मिलेगा। इस दृष्टि से प्रश्नोत्तर कर सकते हैं। स ‘शंका-समाधान’ कार्यक्रम के बारे में कुछ बातें भूमिका के रूप में समझें। दरअसल, इसमें दो हिस्से हैं। एक हिस्सा है- शंका पूछना, और दूसरा हिस्सा है – उसका समाधान करना यानि कि उत्तर देना। सवाल उठता है कि, इसमें से कौन सा हिस्सा सरल है? वस्तुतः शंका पूछना सरल है, जबकि उत्तर देना कठिन। सरल काम आपके हिस्से में है, और कठिन काम मेरे हिस्से में है, क्योंकि उत्तर मुझे देना है। कोई भी काम अगर नियमपूर्वक किया जाए, तो उसमें बहुत लाभ होता ही है। यदि नियम तोड़कर काम करेंगे, तो उससे लाभ तो होगा नहीं, उलटे नुकसान ही होगा। कार्यक्रम ‘शंका-समाधान’ आपके लाभ के लिये शुरु किया गया है। अतः स्पष्ट है कि – यदि ‘शंका-समाधान’ के नियमों का पालन करेंगे, तो बहुत लाभ होगा। इसके विपरीत, विहित नियमों का पालन नहीं करेंगे, तो नुकसान होगा। भगवान की कृपा से, गुरुजनों के आशीर्वाद से मुझे काफी कुछ सीखने को मिला है। उसके आधार पर मैं आपके प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास करूँगा। पर हम दोनों इस बात का ध्यान रखेंगे कि ‘शंका-समाधान’ के नियमों का पालन हो।